कुछ दिनों पहले मुझे व्हाट्स ऐप्प द्वारा एक सन्देश प्राप्त हुआ जिसका शीर्षक था : “क्या भारत का संविधान जन्ता को धोख़ा दे रह है”
मैं इस ब्लॉग के माध्यम से उस संदेश का उत्तर देने का प्रयत्न कर रहा हूँ। ये विचार मेरे निजी है और ये आवश्यक नहीं है कि आप भी इन विचारों से सहमत हो।
क्या भारत का संविधान जन्ता को धोख़ा दे रह है — नहीं
भारत के संविधान क मूल मन्त्र है – सभी भारतवासी एक समान है
प्र – नेता २ जगह से चुनाव लड़ सकता है पर आम आदमी २ जगह से मतदान नहीं कर सकता
उ – संविधान में इस बात क प्रावधान है कि कोइ भी व्यक्ति २ जगह से चुनाव लड़ सकता है। किन्तु यदि वो दोनोट जगहों से जीट जात है तो उसे एक जगह से स्तीफा देन पङेगा क्यूँ कि वो एक हि जगह से जनता क प्रतिनिधित्व कर सकते है
प्र – आप जेल में हो तो मतदान नहीं कर सकते किन्तु नेता जेल में हो तो चुनाव लड़ सकता है
उ – इसका कारण भेद भाव नहीं है अपितु सुरक्षा है। यदि एक कैदी को मतदान के लिये आज्ञा दी तो सभी को देनी पडेगी और फ़िर आम नागरिकोँ तो सुरक्षा प्रदान करने में मुश्किल हो सकती है। नेता भी यदि जेल में हो तो उसे मतदान करने का अधिकार नहीं
नेता को जेल में रहकर चुनाव लड़ने का अधिकार इसलीये है क्यों कि जेल में रहना इस बात का प्रमाण नहीं कि उसने कोइ आपराध किय है। उदहारण स्वरुप गांधी जी भि जेल में गये थे किन्तु वो अपराधी नहीं थे।
यदि नेता के खिलाफ़ अपराध सिद्ध हो गय हो और फ़िर उसे जेल हुई तो संविधान उसे चुनाव लड़ने का अधिकार नहीं देत।
प्र – बैंक की नौकरी या फ़िर अन्य नोकरिया
उ – भारत का संविधान सभी नागरिकों को समान रूप से देखता है। इसी कारण वर्ष चुनाव लड़ने का अधिकार सभी को है – चाहे वो किसी भि जाति का हो, चाहे अनपढ़ हो, या फ़िर लूला या लंगड़ा हि क्योँ न हो
जनता का प्रतिनिधित्व करने के लिए किसी डिग्री कि आवश्यकता नहीं है। केवल करुणा भावना की आवश्यकता होती है।
किन्तु किसी नौकरी को करने के लिये आपको उस काम में कुछ हद तक निपुणता होनी चाहिए। उदहारण स्वरुप क्या आप अपने पैसे ऐसे बैंक में रखना पसन्द करेंगे जाहा के कर्मचारीयो को जोङ गुणा भाग हि ना आता हो। क्या आप चागेंगे की देश कि सिमा कि रक्षा ऐसे लोगो को दी जाये जिन्हे शास्त्र चलाना हि ना आटा हो
ध्यान रहे शिक्षा मंत्री का कार्य पाठशालाओं में शिक्षा प्रदान करना नहीं होत अपितु ऐसी नितिया बनाना होता है जिस से कि देश का हर नागरिक शिक्षित हो सके
प्राचीन भारत का उदहारण ले तो – उत्तम राजा वो नहीं जो उत्तम योद्धा हो , उत्तम राजा वो है जो अपने देश वासीयो को अपने पुत्रों के समान समझे और उनका रक्षण करे
सीमाओ कि रक्षा के लिये तो एक कुशल सेनापति कि आवश्यकता है और स्माज को शिक्षित करने के लिये उत्तम गुरु कि आवश्यकता है
वैधानिक चेतावनी – मैं ये नही कहता कि नेता जो कर रहे है वो सही है , अपितु ये केहने क प्रयास कर रह हुन कि हमारा सँविधान किसी व्यक्ति विषेश के प्रति भेद भाव नहीं करता
यथार्थ ही संविधान में समय अनुसार उचित परिवर्तन कि आवष्यकता अनिवार्य है किन्तु संविधान को दोशी मानना उचित नहीं है।